
1 अप्रैल 2025, मंगलवार आज चैत्र नवरात्रि का तीसरा दिन है, जिसमें देवी दुर्गा के तीसरे स्वरूप मां चंद्रघंटा की पूजा-अर्चना की जाती है। मां चंद्रघंटा का स्वरूप दिव्य और सौम्य है। उनके मस्तक पर घंटे के आकार का अर्धचंद्र विराजमान है, जिस कारण उन्हें चंद्रघंटा कहा जाता है। मां के दस हाथ हैं, जिनमें विभिन्न अस्त्र-शस्त्र सुशोभित हैं और उनका वाहन सिंह है। मान्यता है कि मां चंद्रघंटा की पूजा करने से जीवन में शांति, समृद्धि, और मानसिक संतुलन प्राप्त होता है। आइए जानते हैं मां चंद्रघंटा की पूजा विधि, मंत्र, भोग, शुभ रंग और उनकी पौराणिक कथा।
मां चंद्रघंटा की पूजा विधि –
1. स्नान और शुद्धि: सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और साफ वस्त्र धारण करें।
2. पूजा स्थल की सफाई: पूजा स्थल को साफ करें और मां की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।
3. गंगाजल से स्नान: मां चंद्रघंटा की मूर्ति को गंगाजल से स्नान कराएं।
4. पूजन सामग्री अर्पण:
– मां को धूप, दीप, पुष्प, रोली और चंदन अर्पित करें।
– मां के चरणों में पुष्प, अक्षत और माला चढ़ाएं।
5. भोग समर्पण: मां को दूध और दूध से बनी मिठाइयों का भोग अर्पित करें।
6. मंत्र जाप और आरती:
– मां के मंत्रों का जाप करें।
– पूजा के बाद मां की आरती करें और प्रसाद वितरण करें।
मां चंद्रघंटा का मंत्र –
पिण्डजप्रवरारूढ़ा चण्डकोपास्त्रकेर्युता।
प्रसादं तनुते मह्यं चंद्रघण्टेति विश्रुता॥
ध्यान मंत्र –
वन्दे वांछित लाभाय चन्द्रार्धकृत शेखरम्।
सिंहारूढ़ा चंद्रघंटा यशस्वनीम्॥
मणिपुर स्थितां तृतीय दुर्गा त्रिनेत्राम्।
खंग, गदा, त्रिशूल, चापशर, पदम कमण्डलु माला वराभीतकराम्॥
पटाम्बर परिधानां मृदुहास्या नानालंकार भूषिताम्।
मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि, रत्नकुण्डल मण्डिताम॥
प्रफुल्ल वंदना बिबाधारा कांत कपोलां तुगं कुचाम्।
कमनीयां लावण्यां क्षीणकटि नितम्बनीम्॥
मां चंद्रघंटा का भोग –
चैत्र नवरात्रि के तीसरे दिन मां चंद्रघंटा को दूध और दूध से बनी मिठाइयों का भोग लगाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि मां को दूध का भोग अर्पित करने से भक्तों को स्वास्थ्य लाभ और सुख-समृद्धि प्राप्त होती है।
मां चंद्रघंटा का शुभ रंग –
नवरात्रि के तीसरे दिन का शुभ रंग लाल होता है। लाल रंग शक्ति, साहस और समृद्धि का प्रतीक है। इस दिन लाल रंग के वस्त्र पहनकर पूजा करने से मां की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
मां चंद्रघंटा की पौराणिक कथा –
पौराणिक मान्यता के अनुसार, एक बार महिषासुर नामक राक्षस ने स्वर्ग पर अधिकार कर लिया था। उसने देवराज इंद्र को पराजित कर स्वर्गलोक पर अपना राज जमा लिया। देवताओं ने त्राहिमाम करते हुए त्रिदेव (ब्रह्मा, विष्णु और महेश) से सहायता की प्रार्थना की।
त्रिदेवों को देवताओं की दुर्दशा देखकर क्रोध आ गया। उनके क्रोध से उत्पन्न ऊर्जा से मां चंद्रघंटा का अवतार हुआ। देवी ने सभी देवताओं से उनके अस्त्र-शस्त्र प्राप्त किए:
– भगवान शंकर ने अपना त्रिशूल दिया।
– भगवान विष्णु ने अपना चक्र प्रदान किया।
– इंद्रदेव ने अपना घंटा मां को दिया।
मां चंद्रघंटा ने महिषासुर का संहार कर स्वर्गलोक को उसके आतंक से मुक्त किया और देवताओं को उनका स्थान वापस दिलाया।
मां चंद्रघंटा की पूजा करने से साधक को विशेष लाभ प्राप्त होते हैं:
– जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
– रोग-शोक और संकटों से मुक्ति मिलती है।
– भक्तों को मानसिक शांति और स्थिरता प्राप्त होती है।
– जीवन में सुख-समृद्धि और उन्नति का मार्ग प्रशस्त होता है।
– नवरात्रि में मां की आराधना से दुखों का नाश और इच्छाओं की पूर्ति होती है।
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