
कांग्रेस के लिए दक्षिण भारत के दो महत्वपूर्ण राज्य कर्नाटक और तेलंगाना की सत्ता में स्थिरता बनाए रखना आसान नहीं हो रहा है। इन दोनों राज्यों में पार्टी को अपनी ही सरकारों के भीतर बढ़ती अंदरूनी सियासी खींचतान और नेतृत्व संघर्ष का सामना करना पड़ रहा है।
कर्नाटक में मुख्यमंत्री सिद्धरमैया और उपमुख्यमंत्री व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डी.के. शिवकुमार के बीच सत्ता संतुलन को लेकर दांवपेंच लगातार जारी हैं। दोनों नेताओं के बीच चल रही प्रतिद्वंद्विता पार्टी आलाकमान के लिए लगातार सिरदर्द बनी हुई है, जिससे राज्य की प्रशासनिक स्थिरता भी प्रभावित हो रही है।
तेलंगाना में भी मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी अपनी पहली कैबिनेट विस्तार को लेकर चुनौतियों से जूझ रहे हैं। छह पदों के लिए योजना थी, लेकिन अंततः केवल तीन मंत्रियों को शपथ दिलाई गई। यह कदम सत्ता में भागीदारी चाहने वाले विधायकों की बढ़ती दावेदारी और सामाजिक समीकरणों को साधने के प्रयास के बीच लिया गया।
कैबिनेट में शामिल किए गए तीन नए मंत्रियों में दो दलित और एक ओबीसी वर्ग से हैं, जबकि अनुसूचित जनजाति वर्ग को खुश करने के लिए रामचंद्र नायक को विधानसभा का डिप्टी स्पीकर बनाया गया है।
तेलंगाना और कर्नाटक दोनों सरकारें अब राहुल गांधी के सामाजिक न्याय एजेंडे को लागू करने की दिशा में कदम बढ़ा रही हैं।
कर्नाटक में 2015 की जातीय जनगणना रिपोर्ट को ठंडे बस्ते में डालकर नई सामाजिक-आर्थिक जातिवार जनगणना कराने की घोषणा की गई है। वहीं तेलंगाना में जातिगत संतुलन को ध्यान में रखते हुए मंत्रिमंडल का विस्तार किया गया।
बताया जा रहा है कि मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी अपनी पसंद के नेता पी. सुदर्शन रेड्डी को मंत्रिमंडल में शामिल कर उन्हें गृह मंत्री बनाना चाहते थे, लेकिन पार्टी हाईकमान और प्रदेश अध्यक्ष बी. महेश कुमार गौड़ के विरोध के चलते यह संभव नहीं हो पाया।
वहीं चुनाव से पहले कांग्रेस में लौटे कोमाटीरेड्डी राजगोपाल रेड्डी जैसे वरिष्ठ नेताओं को भी मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिल पाई, जिससे असंतोष और गहरा गया है।
इन सबके बीच कांग्रेस नेतृत्व ने रणनीति के तहत तीन कैबिनेट पद रिक्त रखे हैं ताकि भविष्य में जैसे-जैसे सियासी परिस्थितियां बदलें, उसी अनुसार नेताओं को साधा जा सके।
तेलंगाना और कर्नाटक में सत्ता संतुलन साधने में जुटी कांग्रेस, अंदरूनी खींचतान बनी बड़ी चुनौती –
Congress is trying to balance power in telangana and karnataka, internal conflict is a big challenge