
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम. के. स्टालिन ने गुरुवार को केंद्र सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट से राष्ट्रपति संदर्भ के ज़रिए राय लेने के फैसले की कड़ी आलोचना की है। यह कदम राज्यपालों द्वारा विधेयकों पर निर्णय लेने की समयसीमा को लेकर हाल ही में आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले के संदर्भ में उठाया गया है। स्टालिन ने इस पहल को केंद्र के भ्रामक इरादों का प्रमाण बताया और कहा कि यह पहले से तय संवैधानिक स्थिति को पलटने का प्रयास है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि यह कार्रवाई तमिलनाडु के राज्यपाल द्वारा लोगों के जनादेश को कमजोर करने के लिए भाजपा के इशारे पर काम करने की एक और मिसाल है। उन्होंने कहा, यह लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई राज्य सरकारों को कमजोर करने का केंद्र सरकार का हताश प्रयास है, जो राज्यपालों को अपने एजेंट के रूप में इस्तेमाल कर रही है।
स्टालिन के रुख का समर्थन करते हुए, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) ने भी केंद्र के इस कदम की कड़ी निंदा की। सीपीआई(एम) के महासचिव एम. ए. बेबी ने एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर पोस्ट किया, राज्यपाल भाजपा के इशारे पर काम कर रहे हैं और विपक्ष-शासित राज्यों के कामकाज में बाधा बन रहे हैं। यह संघीय ढांचे का उल्लंघन है।
सीपीआई महासचिव डी. राजा ने भी कहा कि केंद्र सरकार का यह कदम संविधान के संघीय मूल्यों को कमजोर करने की साजिश है और सभी गैर-भाजपा राज्यों को इसका विरोध करना चाहिए।
मुख्यमंत्री स्टालिन ने यह भी पूछा कि राज्यपालों को विधेयकों पर निर्णय लेने के लिए समयसीमा तय करने से आपत्ति क्यों होनी चाहिए? उन्होंने केंद्र पर निशाना साधते हुए कहा, क्या भाजपा राज्यपालों की देरी को वैध ठहराना चाहती है और विपक्षी शासित विधानसभाओं को पंगु बनाना चाहती है?
स्टालिन ने चेताया कि देश एक नाजुक मोड़ पर खड़ा है और यह राष्ट्रपति संदर्भ संविधान में शक्तियों के बंटवारे के संतुलन को बिगाड़ने का गंभीर प्रयास है। उन्होंने सभी गैर-भाजपा राज्यों से इस मुद्दे पर एकजुट होकर संविधान की रक्षा की लड़ाई में भाग लेने का आह्वान किया।
पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च द्वारा जारी रिपोर्ट में बताया गया कि 2024 में पारित विधेयकों में से 18% को मंजूरी देने में तीन महीने से अधिक का समय लगा। हिमाचल प्रदेश, सिक्किम और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में यह देरी ज्यादा देखने को मिली। हालांकि, अरुणाचल प्रदेश, बिहार, दिल्ली, मिजोरम और राजस्थान जैसे राज्यों में सभी विधेयकों को एक महीने के भीतर मंजूरी दे दी गई।
स्टालिन और वाम दलों ने राष्ट्रपति के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट में मामला भेजने के केंद्र के कदम का किया विरोध –
Stalin and left parties opposed the centre move to send the matter to the supreme court through the president