
हिंदू धर्म में पूजा-पाठ के दौरान शंख और घंटी बजाना एक बेहद पवित्र परंपरा मानी जाती है। मंदिरों में प्रवेश करते ही भक्त सबसे पहले घंटी बजाते हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इसके पीछे का रहस्य क्या है? दरअसल, घंटी का उल्लेख स्कंद पुराण, अग्नि पुराण और कई तांत्रिक ग्रंथों में मिलता है, जो इसके महत्व को दर्शाता है। आइए जानें मंदिर की घंटी से जुड़े रोचक तथ्य।
घंटी से जुड़ी धार्मिक मान्यताएं
मान्यता है कि घंटी की ध्वनि राहु-केतु जैसे पाप ग्रहों के अशुभ प्रभाव को कम करती है। यही कारण है कि राहु-केतु दोष के समाधान में घंटी बजाने की सलाह दी जाती है। घंटी और उसकी ध्वनि को ब्रह्मा के रूप में भी माना गया है। इसका नाद वातावरण को शुद्ध करता है और मन को शांत कर पूजा में ध्यान केंद्रित करने में मदद करता है।
घंटी का वैज्ञानिक पक्ष
घंटी की ध्वनि विशेष आवृत्ति पर होती है जो वातावरण से नकारात्मक ऊर्जा को समाप्त करती है। यह शरीर के सातों चक्र को जागृत करती है, जिससे ऊर्जा संतुलन बना रहता है। ध्यान और मेडिटेशन के लिए यह आदर्श है क्योंकि इसकी कंपन मन को केंद्रित करता है।
कितने प्रकार की होती हैं मंदिर की घंटियां?
1. गरुड़ घंटी – हाथ में पकड़कर बजाई जाती है, इसे घरों में पूजा के समय प्रयोग किया जाता है। इसमें गरुड़ का चिन्ह होता है, जो भगवान विष्णु तक भक्त का संदेश पहुंचाता है।
2. द्वार घंटी – मंदिर के प्रवेश द्वार पर लटकती होती है; बड़ी या छोटी दोनों तरह की हो सकती है।
3. हाथ घंटी – पीतल की ठोस प्लेट जैसी होती है जिसे लकड़ी के गद्दे से बजाया जाता है।
4. घंटा – यह आकार में बड़ा होता है और इसकी ध्वनि कई किलोमीटर दूर तक सुनी जा सकती है।
घंटी बजाना केवल परंपरा नहीं, बल्कि पूजा का वैज्ञानिक हिस्सा है। यह पूजा की शुरुआत का संकेत देती है, चेतना को जागृत करती है और आपको मानसिक रूप से ईश्वर के निकट लाती है।
पूजा के समय मंदिर में घंटी क्यों बजाई जाती है? जानिए इसके पीछे का कारण –
Why is the bell rung in the temple during worship? Know the reason behind it